नेपाल की प्राचीन कलाओँ में मिथिला चित्रकला का अपना विशिष्ट स्थान है। पुराने समय में लोगों की सोच क्या और कैसी थी ? इन अनुभवों को चित्रों के माध्यम से सहजता से व्यक्त करने का चलन मिथिला चित्रकला में रहा है। हालाँकि विगत कुछ वर्षों में हुआ कुछ ऐसा कि मिथिला चित्रकला को एक अंचल विशेष तक सीमित मान लिया गया। जबकि सच्चाई यह है कि यह लोककला उस वृहत्तर मिथिला के अंचल में पनपी और फूली-फली, जिसके अंतर्गत नेपाल के तराई क्षेत्र से लेकर बिहार के कोशी अंचल और वर्तमान दरभंगा, मधुबनी जैसे जिले आते हैं। बहरहाल इसी नेपाली मिथिला चित्रकला में वर्ष सन् 1990 से सृजनरत कलाकार एससी सुमन(नेपाल) ने अपनी कलाकृतियों में इस पारम्परिक कला का समावेश आधुनिकता के साथ किया है। एससी सुमनसे बातचीत के आधार पर इस आलेख को मूल रूप से नेपाली में प्रस्तुत किया है लेखक सुनील राज ढकाल ने। प्रस्तुत है उस मूल लेख का हिंदी भावानुवाद…
लेखक सुनील राज ढकाल
बचपन में अपनी दादी द्वारा घर आँगन में की जानेवाली चित्रकारी को देखते समझते बड़े हुए सुमन ने इस चित्रकला को अपनाया। किन्तु उस पारम्परिक कला परंपरा की महज़ अनुकृति से इतर सुमन इसमें आधुनिक प्रयोगों के पक्षधर बनकर उभरे। कहा गया है ‘बादेबादे जायते तत्वबोध, बोधे बोधे बोध्यतेइड्यामीशः’यानि वादविवाद से ही उपजता है तत्वबोध, और यही तत्वबोध मूल बातों का बोध कराता है। यानि सहज शब्दों में कहें तो वादविवाद या बातचीत से चीज़ों की समझ पैदा होती है और यहीं से हमारे अंदर मूल या गूढ़ तत्वों की समझ पैदा होती है। तो क्या कला में विस्तृतता तथा विविधता जुड्ने मात्र से ही पूर्णता प्राप्त हो जा सकती है ? निःसंदेह इसका जवाब होगा नहीं। क्योंकि उपरोक्त चीजों के अलावा इसके लिए आवश्यक है मौलिकता का होना। दरअसल कला या किसी भी सृजन में जिस मौलिकता की आवश्यकता होती है, उसी मौलिकता का अनुसरण करते हुए अव्यक्त को सफलता पूर्वक व्यक्त करना ही वास्तव में आधुनिकता है। क्योकि आधुनिकता का सीधा संबंध होता है वर्तमान से। जैसे चीटियों की टोली बरसात के दिनों में अपनी बाम्बी के आसपास मशरूम (कुकरमुत्ता) के बीज जुटाकर बो देता है और जाड़े के दिनों में यही पौधे उसकी खाद्यसामग्री की आवश्यकता की पूर्ति करती है। कुछ इसी तरह से प्रकृति में व्याप्त सभी चीजें समय के अनुरूप अपना कार्य करते रहती है। ऐसी ही बहुत सी सूक्ष्म बातों की समझ, परख और चिंतन ने रचनाकार सुमन की सृजनात्मकता को पुष्पित पल्लवित किया।
कलाकार एससी सुमन
सुमन कहते हैं -“जब सुक्ष्म से अतिसुक्ष्म चीजों की अनुभूति को चित्रों में लाया जाता है, तो ये वस्तुतः सिर्फ मेरे या किसी कलाकार के आनंद के लिए ही नहीं होता है। जो कलाप्रेमी दर्शक इन चित्रों या कलाकृतियों को देखते हैं, वे भी उसके आकर्षण से उतने ही आनंदित होते हैं। कतिपय इन्हीं कारणों से मुझे अपनी कलाकृतियों की बिक्री या उससे जुड़े प्रबंधन के लिए कोई अतिरिक्त प्रयास नहीं करना पड़ता है। चित्रों की रचना करना और उसे प्रदर्शित करने के लिए आर्ट गैलरी या कला दीर्घा तक लाना भर मेरा काम रहता है। उसके बाद का काम मेरी कलाकृतियां ही करती हैं या कहें कि मेरे चित्रों का आकर्षण ही मेरे प्रशंसकों को प्रदर्शनी तक खींच लाता है। वे (प्रशंसक/ कला पारखी) मेरे बनाए हुए चित्रों की मांगकरते है, जिसे खरीदकर वे अपने घरों में सजाते हैं। किसी भी कलाकार को हमारा जन-जीवन, हमारे इर्द-गिर्द चल रहे क्रियाकलाप यहाँ तक कि प्रकृति में हो रहे सभी तरह के परिवर्तन प्रभावित करते हैं। जाड़े के मौसम में रजाई एवं गद्दा बनाने वाले जुलाहे की धुनकी की टंकार हो या कचरे के तौर पर फेंका गया किसी चिप्स का पैकेट, पानी की फेंकी गयी प्लास्टिक वाली वोतल, तथाकथित विकास के नाम पर अन्धाधुन्ध पेड़ों की कटाई जैसी चीजें ही मेरे चित्रों की कथावस्तु हैं। इन समसामयिक तत्वों के साथ-साथ रामायण एवं महाभारत जैसे प्राचीन ग्रंथों में वर्णित कथाओँ के समावेश से चित्र सृजन एक तरफ जहाँ चुनौतीपूर्ण हो जाता है। वहीँ इस चुनौती से जूझने का रोमांच मुझे मेरे सृजन के लिए अतिरिक्त ऊर्जा भी प्रदान करता है। मेरी सी कला साधना के करीब चालीस वर्ष बीत चुके हैं, और अभी भी यह चित्र साधना निरन्तर चल रही है। चार दशक के मेरे जीतोड़ मेहनत और तपस्या से निखरी हुयी मेरी कलाकृतियां कला अनुरागियों अथवा कलाप्रेमियों को लुभा पाती हैं तो मै इसको स्वभाविक ही मानता हूँ।”
एस सी सुमन की एक कलाकृति
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए सुमन कहते हैं -” चित्रकला अपने आप में एक कठिन साधना है। कलाकार अपने अंतर्मन के भावों को हमेशा से व्यक्त करते आ रहे हैं। अभिव्यक्ति की यह सतत प्रक्रिया आज भी न केवल जारी है बल्कि अपने विकासक्रम की ओर अग्रसर भी है। आज के नवोदित कलाकारों के चित्र भी आकर्षक होते हैं। इन युवाओं द्वारा नित नए प्रयोग भी हो रहे हैं, इनके चित्र मुझे न केवल पसंद आते हैं, जानने, समझने और लिखनेको उद्वेलित भी करते हैं। कलाकारों की यह नयी पीढ़ी जिस उत्साह और समर्पण से सृजनरत है, उसे देखकर मन आनंदित होता है। इतना ही नहीं उन लोगो द्वारा किये जा रहे नए प्रयोग मुझे भी कुछ और नया सृजित करने को अभिप्रेरित करता रहता है। किसी भी विधा में विकास या प्रगति एक दिन में आ जाये ऐसा सम्भव नहीं होता है। ये तो निरन्तर चलनेवाली एक लम्बी प्रक्रिया है, जहाँ अपनी मंज़िल तक पहुंचना ही एकमात्र लक्ष्य होता है, इस गन्तव्य या मंज़िल की तलाश की ललक मैं नए कलाकारों में भी पाता हूँ। जैसे महाभारतकालीन कथाओ को वर्णित करते हुए मिथिला लोक चित्रकला में लिखा जाता है, दरअसल चित्र बनाने को मिथिला में लिखना यानी ‘लिखिया’ही कहा जाता है। बहरहाल इसके बाद ही कहीं जाकर किसी सफल जीवन्त प्रस्तुति की अनुभूति कलाकार को होती है।
एस सी सुमन की एक कलाकृति में भगवान बुद्ध
हम अपने बड़े-बुजुर्गों से सुनते आ रहे महाभारत व रामायण मे वर्णित कथाओँ व आख्यानों को अपने लोक चित्र शैली मे प्रस्तुत कर रहे होते हैं, इस तरह से यह लोक परम्परा कायम रहती है। हम जानते हैं कि प्रत्येक लोककला की अपनी पृथक रचना शैली होती है, ऐसा ही कुछ मिथिला में भी है, जो इसे विशिष्ट बनाती है। जैसे कि कचनी-भरनी तथा प्राकृतिक रंगों के उपयोग की परम्परा। इन्हीं मौलिकताओं को कायम रखते हुए मेरा प्रयास होता है मिथिला लोक चित्रकला में समसामयिकता के समावेश का। हम जानते हैं कि लोक कला अपनी एक निश्चित परिधि में सीमित रहती है, किन्तु मैं अपने चित्रों में बर्तमान यानी आज की आधुनिकता को भी मिथिला चित्रकला मे समाहित करता रहा हूँ। उदाहरणके लिए हम देखें तो जहाँ प्रकृति का हरेक अन्य प्राणी प्रकृति में रमा रहता है, किन्तु वहीँ हम मनुष्य प्रकृति का लगातार दोहन करते चले जा रहे हैं। जिसके परिणाम स्वरुप विभिन्न प्राकृतिक प्रकोपों से भी आये दिन हमारा सामना होता रहता है। इस तरह के तथ्यों व कथ्यों की अभिव्यक्ति मैं अपनी कलाकृतियों में करता आया हूँ। जो लोगो को पसन्द भी आते हैं। पर इस तरह के चित्रों को समझने के लिए कथा तथा सन्दर्भ को भी समझना आवश्यक हो जाता है। पर क्या यह सब कुछ समझना इतना सहज और सरल है ? तो जवाब है कि नहीं। अपनी पुरातन अवस्था से आधुनिक अवस्था तक आते आते हमने जो बड़ी-बड़ी इमारतों व अन्य विशालकाय निर्माणों को सृजित किया, वह प्रकृति के चराचर को लगातार प्रभावित कर रहा है। विगत दिनों भुगते गए कोरोना की त्रासदी को ही लें, मैं विषयवस्तु समेत इसे मिथिला चित्रकलाके माध्यमसे उक्त घटनाको प्रस्तुत करता आया हूँ। ठीक उसी तरह जैसे कि मेरे पास सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग से जुडी घटनाओं की कथावस्तु से तैयार मेरी चित्र श्रृंखला प्रदर्शित होने को तैयार है। अगर सब कुछ सामान्य रहा तो उम्मीद करता हूँ कि दिसम्वर माह में इसे दीर्घा में प्रदर्शित कर पाऊंगा। अपने पौराणिक चित्रों की श्रृंखला में मैंने जनकपुर मे राम-सीता की पहली मुलाकात, धनुष यज्ञ, रामसीता विवाह, लंका नरेश रावण द्वारा सीता हरण, से रावण-बध तक की कथा और कृष्ण की गोपियों संग रासलीला से लेकर महाभारत तक में भगवान कृष्ण की भूमिका को भी मिथिला चित्र- शैली में प्रस्तुत किया है। इसके इतर वर्तमान विकास की अंधी दौड़ तथा विश्व में हो रहे जलबायु परिवर्तन के प्रभावों को भी अपनी चित्र श्रृंखला में पिरोने का प्रयास कर रहा हूँ।“
एस सी सुमन की एक अन्य कलाकृति
नोट : मूल आलेख नेपाली में KHOJPATRA.COM (खोज पत्र) में 24आश्विन 2078 ( तदनुसार 10 अक्टूबर 2021,रविवार को प्रकाशित।)
चित्रकलाको ऐतिहासिक विकासको सेरोफेरो कला जीवनकला विशेष साहित्यपोस्ट माघ २२, शनिबार ०८:०१ 300 SHARES Share Tweet Subscribe एससी सुमन एससी सुमन सम्भवत: गाँस, बास, कपास र सन्तानोत्पत्ति पश्चात् मानिसको सबैभन्दा पुरानो आवश्यकता स्वयंलाई व्यक्त गर्नु रहेको थियो। प्रकृति मानिसको पहिलो गुरु थियो। प्रकृतिले उसभित्र आफ्नो लागि भय, आदर र प्रेम उत्पन्न गरेर उसलाई जीवनमा आगाडि कसरी बढनु पर्छ भनी सिकायो। मानिस आजको राम्रो वा नराम्रो, ज्ञानि वा मूर्ख जस्तो पनि छ, उसको मूलमा प्रकृति नै हो। भाषाको जन्म भन्दापूर्व, आज भन्दा हजारौं, लाखौं वर्ष पहिले प्राचीन पाषाण तथा नवपाषाण युगमा जंगलमा फिरन्ते रुपमा विचरण गर्ने मनुष्यले ध्वनि, संकेत, मुद्राको संकेत र हाउभाउलाई भाषाको रुपमा प्रयोग गर्थे। आफ्नो कुरा भन्नको लागि आफ्नो घाँटीबाट कण्ठ्य ध्वनि निकाल्थे र संकेतसँगै प्रतीकको प्रयोग गर्ने गर्थे होला। मानव आफ्नो छेउछाउको प्राणीको ध्वनिको अनुसरण गर्ने गर्थे तर यो पर्याप्त थिएन। आफ्नो वरपर हुने गतिविधिलाई अभिनयको माध्यमले संकेत गर्ने गर्थे। बादलको गर्जन, बिजलीको चमक, झरनाको मधुर ध्वनि र जंगलमा वायुको तरङ्ग, ...
प्रतीक – उद्भव र विकास कला चित्रकला विशेष साहित्यपोस्ट चैत्र १९, शनिबार ०८:०१ 434 SHARES Share Tweet Subscribe एस. सी. सुमन एससी सुमन सृष्टिको आदिकालमा मानवको हर्षको कारण प्राकृतिक सौन्दर्य र जीवन यापनको लागि प्रकृति प्रदत्त वस्तु रहेको थियो। सूर्य उदय र अस्त सँगसँगै रात दिन हुनु, आकाशमा तारा र चन्द्रमा देखिनु, घाम-छाया हुनु, पानी पर्नु, मौसम परिवर्तन हुनु, आँधी-बेहरी, अतिवृष्टि, खडेरी जस्ता प्राकृतिक परिवर्तनलाई हेरी आश्चर्यचकित भए। यसरी अर्कोतर्फ मृत्यु हुँदा आतंकित पनि भए होलान्। जसलाई रोक्न असमर्थ हुँदा, प्राकृतिक परिवर्तनमाथि विजय प्राप्त गर्न संघर्षरत रहँदा, यसमाथि आफ्नो नियन्त्रण नहुँदा आदि मानवले अदृश्य सत्तालाई स्वीकार गरी शक्तिका रूपमा प्रतिष्ठित गरी सर्वोच्च स्थान दियो। फलतः उसले प्राकृतिक उपकरणलाई शक्तिको रूपमा आफ्नो आत्मरक्षार्थ हेतु उपासना गर्न लागे, जो कालान्तरमा रूढी हुँदैगयो र यहीँबाट आदिमानवको आत्मरक्षार्थको उपास्य प्राकृतिक उपादान प्रतीक बन्यो तथा यिनै प्रकृति प्रदत्त शक्ति तथा उपादानको आधारमा मानवीय कला विकसित हुँदै गयो। एक प्रकारले प्रतीक कलाको उद्भवको...
Artist SC Suman’s Art Exhibit “New York Series” is a Landmark Moment for Mithila Art in the USA In an increasingly globalized art world, where traditional boundaries dissolve in the face of creativity and innovation, SC Suman’s exhibition “New York Series” in the United States is more than just an art show — it is a cultural milestone. As a renowned Mithila artist from Nepal, Bihar, India, SC Suman carries the legacy of centuries-old folk Mithila traditions into contemporary art spaces, and his debut series in the United States marks a significant moment for Mithila art on the international stage. A Contemporary Voice from an Ancient Tradition Mithila art, also known as Madhubani painting, is one of Nepal and India’s oldest and most revered folk art traditions. Characterized by its intricate line work, vibrant colors, and deeply symbolic themes, it has long been associated with rural women artists from the Mithila region. What makes Suman’s work revolutionary is his ability to bot...
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