दरभंगा टावरक ठमकल घडी....

 


■ दरभंगा, चाइर दिवसीय मधुवनी लिट्रेचर फेस्टिभलक चारिम संस्करण दरभंगा च्यापटर भाषा, साहित्य, कला और वास्तु शिल्पक एतिहासिक नगरी दरभंगाके महराजा कमेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय प्रांगनमे संपन्न भेल। निमन्त्रणा पावि  उत्साहित छलै । दरभंगा जेबाक अवसर जे छ्ल। करिब तीन दशक वाद पुन: दरभंगा जेवाक ई अवसर डॉ. सविता झा खां जी के वोलाहट पर भेटल। हम अपन पढाईके क्रममे करिब पाँच वरख अत व्यतित केने छलै। वोहि समय मे बरहेता, राँटिस कलाग्रामके रुप मे परिचय भेल छ्ल। तहिया नै सोचने छ्लै मिथिला कलास हमर सम्बन्ध अहि तरहे गठ्जोर करत। अहि नगरी मे मिथिला चित्रकारके रुपमे समान्नित होयब। शुक्रदिन ११ डिसेम्बर साझ क हमर  एकल कला प्रदर्शनी काठमाण्डूमे  "मिथिला कसमस : साईकलस अफ टाईम" शुरु भेल। भोरे काठमाण्डू विमान स्थलस जनकपुरक लिए विदा भेलै। कुहेसक करण विमान करिव चाईर घण्टा बिलम्ब स उडल। जनकपुरक बाद भारतीय सीमा जटहीक लोकल बसमे सीट भेटल, दरभंगाका यात्रा सुखद रहल। लगै छ्ल बहुत किछ  बदलि गेल हेतैक मुदा अतेक वरख बादो  बहुत किछ  नैइ बदल लै। बसके खिडकी स देखने लगल गाममे पक्का घरक संख्या  जरुर बढल सगे गाछ-वृक्षमे कमी यानीकि हरियाली कम लगल।

रैव दिन कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विवि परिसरमे शंखनाद के सग मे दिप प्रज्वलक विधिवत चाईर दिवसीय मधुबनी लिटरेचर फेस्टिवल के उद्घाटन भेल। रसनचौकी, गोसाउनी गीतक वाद ...श्रीलंका के राजदूत मिलिंद मारागोडा समारोह मे अपन पत्नी जेनिफर मोरागोडाक  संग पहुंचल छ्लाह। श्री मारागोडा अपन उदघाटनभाषण मे कहला कि हमरा अत आवि मिथिला के संस्कारके लगस बुझबाक अवसर तथा अतके विद्वत जनस बहुत किछ सुनबाक लेल उत्साहित छी। कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विवि के कुलपति प्रो. शशिनाथ झा कहलाह संस्कृत आर मैथिली साहित्य स परिपूर्ण मिथिला क संस्कार, संस्कृति आर कला के एक बार फेर सम्पूर्ण  विश्वके समक्ष रखवाक काम मधुबनी लिटरेचर फेस्टिवल कर रहल अछी, कहि खुशी व्यक्त केलाह। अहि समारोह मे नेपालस कला आ साहित्य क्षेत्र के प्रप्तिनिधि आर श्रीलंका के अतिथि हमरा सग छैथ। यी दुनु देशस  मिथिलाक मात्र राजनीति नहीं, बल्कि सांस्कृतिक संबंध रहल अछी। जवाहर लाल नेहरू विश्विद्यालय के प्रो. रामनाथ झा कहलैथ 'मधुबनी मात्र एक नगर आर शहरक नाम टा नै अछि, यी एकटा संस्करक प्रतीक अछि, जो सनातन अछी। मिथिलाक संस्कृति आर वैदिक सभ्यता मे मधुके  सत्य आर धर्म के रूप में व्याख्यायित क्याल गेल अछि। प्रो. रमानाथ झा  कहलैथ सम्पूर्ण विश्वके मिथिला ज्ञानक परंपरा देलक। हमरा लेल मिथिलाके ताप्तर्य पान आर मखाना से नही,  बल्कि अतके शास्त्रीय परंपरा स अछी। पद्मश्री डॉ. उषा किरण खान कहलैथ कि सीताक  धरती मिथिलाक अपन ज्ञान पंरपरा आर संस्कार पर गर्व अछि। हमरा खुशी अछि कि हम सब एक बेर फेर अहि आयोजनाक हिस्सेदार बलनौ। लनामि विवि के कुलसचिव प्रो. मुश्ताक अहमद कहलैथ कि कोनो भाषाके कोनो धर्म विशेष स नहि जोडि सकैत छि। भाषा स्वतंत्र होईत अछि । 

काडमांडू स आएल विश्वप्रसिद्ध भाषाशास्त्री डॉ. रामावतार यादव 'जुबली हॉल' मे भाषा-विकासक लेल सतत चिंतनशील रहला। महान रंगकर्मी रामगोपाल बजाज, लेखिका उषाकिरण खान, जेएनयूक भाषा विषयक आधिकारि, विद्वान सुशांत मिश्र,  सुप्रसिद्ध रंगकर्मी कनुप्रिया शंकर पंडित, सहित सुप्रसिद्ध नृत्यांगना वीणा सी शेषाद्रि (बैंगलोर), राग सुधा (लंदन), लोकगीत मर्मज्ञा रंजू मिश्र, देवशंकर नवीन, अरुणाभ सौरभ, कृष्णमोहन झा, असमीभाषी मैथिली विदुषी दीपामणि हलोई, सोपर आइआइटी से लिंग्युस्टिक पर काज करहल देवांशी, अतिरिक्त  देश-विदेश स आएल अनेक विद्वतजनके  देखवाक आर सुनवाक हमरालेल यी अवसर छ्ल। 

विश्व भैर सर्वाधिक चर्चित मिथिला कला मधुबनी लिटरेचर फेस्टिव का प्रमुख आकर्षण, माता सीता पर लगाओल  'वैदेही सीता बियॉन्ड द बॉडी' मिथिला पेंटिंग क प्रदर्शनी छ्ल । जे दर्शककेआकर्षित क रहल छल। यी अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी दरबार हॉल मे लगाओल गेल छ्ल। जाहिमे भारत के अलग-अलग राज्यस आ विभिन्न 6 देश- अमेरिका, कनाडा, मलेशिया, नेपाल आर सिंगापुर के कलाकार द्वारा बनाओल डेढ़ सयस अधिक पेंटिंग्स प्रद्र्धित छ्ल। यी प्रदर्शनीके देख क दर्शक भाव विभोर छल।  हमहु यी प्रदर्शनीके देख अभिभूत भेलै। हमरालेल  संभवतः यी माता सीता पर विश्वक पहिल पेंटिंग प्रदर्शनी छ्ल। जाहिमे हुनक विभिन्न रूपके एक सग देखबाक अबसर भेटल। जाहिमे माता सीता के प्राकट्य स लक रामक  प्रेयशी, हुनक पत्नी आर अयोध्या क रानीक अलावा भगवती सीता के कई रूपक दर्शन  भेल। एक सग अतेक कलाकर संग भेट घाट आर जान पहिचान क  अवसर भेटल। वैदेही' विषय पर विश्व भरसके पेंटिंग क एकसग स्थानीय सरजाम जुटा दरवारहालक अस्थायी आर्टगैलरी मे बदैल प्रदर्शन केल गेल छ्ल। डॉ. सविता झा खां क परिकल्पना अनुरुप ख्यात कलाकार मनीषा झा सयोजन केलि । उदघाटन सत्र समारोह मे  मिथिला चित्रकलाके क्षेत्र मे अपने 50 वर्ष स बेसी के विशेष योगदानक लेल  पद्मश्री उषा किरण खान के हात मिथिला कला के सिध्दहस्त चित्रकार विमला दत्त कर्ण के सम्मानित केयल गेल।  चित्रकार गोपाल झा एवं  एससी सुमन यानी पक्तीकार स्वयम प्रथम  इन्टरनेशनल लाईफटाईम एचिभमेन्ट पुरस्कृत द्वारा श्रीलंका के राजदूतके हात सम्मानित भेलै । सम्मनित चित्रकारके कलायात्रा पर कलाकार मनीषा झा प्रकाश देलैन। 

बिहारमे संगीतक  एक समृद्ध इतिहास रहल अछी। खासक  ध्रुपदगायिकी के क्षेत्र मे बिहार के संगीत घराना देश विदेशमे अपन पहचान बनैने  अछि। बिहार मे ध्रुपदक तीन प्रमुख घराना मे बेतिया, दरभंगा आर डुमरांव भेल अछी। ध्रुपद गायन, दरभंगा घराना, पंडित रामकुमार मल्लिक, श्री साहित्य मल्लिक, श्री संगीत मल्लिक, श्री कौशिक कुमार मल्लिक पखावज समा बन्हलैन। भारत, नेपाल, श्रीलका क त्रिकोणात्मक सम्बन्ध मे कला आर साहित्यक भूमिका  विषयक विचार मन्थन मे श्रीलंका के राजदूत मिलिंद मारागोडा, बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव राम माधव, नेपाली  प्रनिधी साहित्यकार डॉ. रामभरोस कापडी तथा चित्रकार एससी सुमन अपना -अपना दृष्टिकोण रखलैथ। अहि सत्रक सचालन दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के दरबार हॉल में  डॉ. सविता झा खां केलैथ। कुल मिलाक बौधिक धरोहरके समेटक अपना विलुप्त होईत रोजगार , प्राकृतिक संसाधनक महत्व, समस्या आर समाधानक चर्चा परिचर्चा संगहि विविध क्षेत्र मे, युगपरिवर्तनकक साथ अपनेके जोडवाक  प्रयास, करब सब पक्षके विव्दान एकमत भेलाह।

समग्रतः सब बिंन्दु आ परिकल्पनाके दृष्टिसे अद्भुत छल। कोई  पक्ष छुटा नहि लगाल। यी कार्यक्रमक प्रारुपके रुप मे बाल-सहिती, युवा-सहिती, गान्धी आत्म मन्थन शिविर, स्त्री दलान, हो वा फैशन सो एकवस्त्रा या नृत्य -गाथ जानामी जानकी, समाज मे अपन प्राचीन गौरवशाली महिला सहभागिताका झांकि मात्रटा नहि, वल्कि आधुनिक सशक्त महिलाक भागीदारीक यथार्थक दिक्दर्शन रहाल। वेद ऋचा क  स्त्रि द्वारा पाठ एक सचेतन प्रयास या एक स्टेटमेंट के रुप मे देखल जा सकैत अछि, चारिम संस्करण के अबैत अबैत यी परिवर्तन आवश्यक भगेल। जत हम अपन विचारके मुक्त भाव स स्त्रीमुल्यक परिपेक्ष मे रखल गेल। अहि परिकल्पनाके मुर्तरुप देनाई सहज नहि छ्ल। वो जानकीक दृष्टिक जतेक प्रसंशा कयल जाय कम होयत। कियाकत सब सत्र अपने आपमे उत्कृष्ट छ्ल। निश्चित रुपे यी साँस्कृतिक उत्सवक सफलताक लेल बधाई के पात्र डा.सविता झा खानके जाइ छैन। स्वयं कहैत छैथ इ सब माताके आशीर्वाद स मात्र सम्भव भेल। वास्तव मे कहल जायत यी समग्र आयोजन नारी-शक्ति द्वारा ओहि माता जानकि व्दारा आयोजित छल।जेकर  लगभग सब कार्यकर्ता महिला छलि। जाहिमे प्रमुख स्नेहा, किरण, ज्योति, निवेदिताके जिम्मेवारी बेसी छ्ल जेना अनुभव भेल।  अमित आनन्द आ सान्तनु कुमार झा प देर राईत तक अतिथी गणक सतकार मे जुटल रहला। 

 विवि प्रांगण मे मधुबनी लिटरेचर फेस्टिवलक सग स्टल लागल छ्ल। हस्तकला, घरेलु उत्पाद, साहित्य अकादमी, भारतीय पुस्तक न्यास सहित अनेक प्रकाशन अपन पुस्तकक बिक्री के लेल उपलब्ध करैने छ्ल।त तथापि  अधिकान्स स्टाल खाली छ्ल। अहि दिश आयोजकक ध्यानजेनाई जरुरी छ्ल।

अहि सग रिक्सास हम अपना दरभंगा, आर लहेरियासराय घुमबाक मोह त्याग नै सकलै।  दरभंगा टावरक रात्रीकालिन त्रिपेकक्षण बान्छित स्वाद चाहे उसनल अण्डा हो आ मलाई दार लस्सी, गरमा गरम चाह आ पान सेहो खेलौ। नहि जानी किया कमस कम समय मे बेसी स बेसी लुफ्त उठेबाक उत्कण्ठा छ्ल, फेर कहिया एबाक अबसर भेटत। कलाकार मित्र सजय कुमार जयसवाल जी के निमन्त्रणा मे मधुवनी मे अबस्थित तथा निर्माणाधीन  मिथिला चित्रकला सस्थान क भ्रमण करवाक अवसर भेटल। पद्मश्री गोदावरी दत्त, पद्मश्री दुलारी देवी, ड. रानी झा, कलाकार प्रभाकर प्रतीक स भेट करबाक अवसर तथा सौभाग्य  प्राप्त भेल। 15 तारिखक मधुवनी मे मित्र संजय जयसवाल जी के आवास पर घी, खिचरी, पापड, अचार साथ गुड खा, हुनक संग बिताओल समयके स्मृति मे कैदक काठमाण्डू दिश विदा भेलै। ओमहर दरभंगा मे अंततः रंजू मिश्र, सुनीता, हेमा आर कल्याणी झाके समदाउन-गायनक संग कार्यक्रम संपन्न भेल। फेसबुक लाईभ देख मन उदास भगेल। शायद कारण मिथिला क  परम्परागत बिदाई गीत गायन 'समदाउन' छ्ल। भारी मन बस मे बस मे बैस सोचलै , जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल स राजस्थानका गौरव बढलै, त कि नहि पता मधुवनी लिट्रेचर फेस्टिभल स बिहार वा दरभंगाक महत्व कतेक बढलै। छोट जगह पर अहि तरह के पैघ आ भव्य कार्यक्रम के संभव करनाई को नो हँसी-खेल नही। आहा लिटरेचर फ़ेस्टिवल क  परिकल्पना या ओकर मौजूदा स्वरूप स सहमत होई या असहमत, लेकिन इस बात स इनकार नहि क सकत छि कि अगामी दिन मे अहि तरहक आयोजना क महत्व लगातातार बढत। की रुग्ण-शहर दरभंगा के बिचो बिच अवस्थित दरभंगा टावर क बन्द घडी चल पडतै आ फेर स अपन घण्टाक ध्वनि स अपना दिश द्यान आकृष्ट करत ? या दरभंगा स प्रकाशित समाचारपत्रक पन्ना मे छपि क रहि जायत ? 

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चित्रकलाको ऐतिहासिक विकासको सेरोफेरो

प्रतीक – उद्भव र विकास

Bridging Nature and Tradition: The Art of SC Suman In a world increasingly defined by rapid urbanization and cultural fragmentation, the work of contemporary artist Suman stands as a vivid reminder of the delicate balance between humanity, nature, and heritage. Through his evocative paintings, Suman explores the interconnected themes of environmental awareness and cultural coexistence, creating art that is as thought-provoking as it is visually compelling. Thematic Foundations : At the heart of Suman’s art lies a profound respect for both the natural world and the diverse cultures that inhabit it. His paintings are not merely aesthetic expressions but narratives—each canvas telling a story about how people and the environment can thrive together. Using symbolic imagery, earthy palettes, and intricate detailing, Suman often blends landscapes with elements of traditional life, suggesting a harmony that modern society risks losing. Environmental Sensibility : Artist Suman’s environmental themes are deeply reflective, often portraying lush forests, rivers, and wildlife alongside scenes of human life. Unlike romanticized nature paintings, his works frequently depict the consequences of environmental neglect—deforested land, polluted waters, and displaced communities. Yet, his tone remains hopeful. By incorporating native flora and fauna, and showing sustainable lifestyles, Suman invites viewers to imagine a more balanced future. Celebrating Cultural Diversity : Equally central to his work is the celebration of cultural diversity. Suman paints people in traditional attire, engaged in rituals, festivals, and everyday life, surrounded by their natural surroundings. These works act as visual archives of indigenous wisdom and sustainable practices. He believes that preserving cultural identity is not in conflict with ecological conservation—in fact, they often reinforce one another. Technique and Expression : Suman’s use of color and form reinforces his message. He blends folk-art styles with contemporary techniques, creating a fusion that reflects the coexistence he champions. Organic textures, repetitive patterns, and a nuanced use of light evoke a sense of continuity between the old and the new, the natural and the human-made. A Call for Harmony : In exhibitions and community projects, Scsuman emphasizes art as a tool for dialogue. His paintings are displayed not only in galleries but also in public spaces and educational settings, aiming to spark conversations about sustainability and cultural empathy. By engaging local communities in workshops, he extends his artistic vision beyond the canvas into the real world. Conclusion : Suman’s art is more than a visual treat—it is a call to action. His unique synthesis of environmental concern and cultural reverence challenges us to rethink our relationship with the planet and with each other. In an age where division and destruction often dominate the narrative, Suman offers a powerful alternative: a vision of coexistence, painted in the rich hues of hope, heritage, and harmony.