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“चन्द्र -संवाद : परम्पराको पुनर्जागरण”

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 “चन्द्र -संवादः परम्पराको पुनर्जागरण” एससी सुमन  मिथिलाञ्चल, केवल भौगोलिक भूगोल मात्र होइन, एक समृद्ध सांस्कृतिक चेतनाको केन्द्र हो। यो भूभाग शताब्दीयौँ देखि वैदिक सनातन परम्पराहरूको पालक, संरक्षक र संवाहक रहि आएको छ। यहाँका पर्व -उत्सव, परम्परा, लोकाचार तथा धार्मिक संस्कारहरूले केवल सामाजिक जीवनलाई मात्रै नभई, आध्यात्मिक अनुशासन र जीवनदर्शनलाई पनि सुदृढ बनाएका छन्। यस्तै अनुपम परम्परा र गहन आध्यात्मिक चेतनाले युक्त एक प्रमुख पर्व हो -चौरचन पर्व, जसलाई स्थानीय भाषामा चौठचन्द्र, चौरचन, वा चौथ चाँदको नामले चिनिन्छ। चौरचन पर्व विशेषतः भाद्र शुक्ल चतुर्थीका दिन, अर्थात् गणेश चतुर्थीको सन्दर्भमा मनाइन्छ। हिन्दू धर्मशास्त्रअनुसार, यही दिन विघ्नहर्ता भगवान् श्रीगणेशको प्राकट्य भएको मानिन्छ। तर मिथिलाञ्चलमा गणेश चतुर्थीले मात्र सीमित अर्थ राख्दैन; यस दिन साँझ परेपछि चन्द्रदेवको पूजा -अर्चना, उपवास र विशिष्ट मन्त्रोच्चारणसहित चन्द्र दर्शन गर्नु अत्यन्तै पुण्यकारी र आवश्यक मानिन्छ। यही सन्दर्भमा यो पर्व चौरचनको रूपमा विकसित भएको देखिन्छ। यस पर्वको मूल उद्देश्य हो -शुभ -लाभ, कुटुम्बको क...

मिथिला संस्कृतिको अरिपन : एक परिचय

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  मिथिला संस्कृतिको अरिपना : एक परिचय मिथिला संस्कृतिको अरिपन कलाको सिर्जनासँगै अनुसन्धान गर्न धेरै बाँकी छ एससी सुमन २०८० असोज २७ गते ८:२९ मा प्रकाशित 34 Shares अरिपन कला मिथिला क्षेत्रको बहुआयामिक सांस्कृतिक सम्पदा हो, तर उपयुक्त अर्थ, इतिहास र परम्परा, प्रतीक र महत्व, सिर्जनाको कारण, विधि र सामग्रीको प्रयोग, अमूर्त रूपमा मूल्यजस्ता धेरै पक्षको पर्याप्त अध्ययन र अनुसन्धानको अभाव छ एससी सुमन नेपाल एउटा सानो र भूपरिवेष्ठित तर विविधतायुक्त प्राकृतिक र सांस्कृतिक सम्पदाको धनी देश हो । कला, संस्कृति, प्रकृति, जनजीवन लगायतका क्षेत्रमा पाइने विविधता नै नेपालको पहिचान हो । मुलुक हैसियत र महिमा मात्र होइन, राष्ट्रको विशिष्ट पहिचान मन्दिर, गुम्बा, चित्र, विभिन्न कला, चाडपर्व, हिमाल, नदी, वन, ताललगायत विभिन्न सुन्दर ठाउँले दिएको छ । यसले हाम्रो सौन्दर्यको झल्कोलाई विश्वसामु चिनाउन सकेको छ । बाँकी विभिन्न कला रूपमध्ये, अरिपन नेपालीय मिथिला क्षेत्रको महत्वपूर्ण सांस्कृतिक सम्पदा हो । यो विशेषगरी मिथिला क्षेत्रका घर र आँगनमा कोरिएको भूमि चित्रकला हो । त्यसैले यसलाई मैथिली संस्कृतिको अद्भूत कला...

मिथिला लोक मुर्ति कलाक सौन्दर्य - सामा - चकेवा : एससी सुमन

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 मिथिला लोक मुर्ति कलाक सौन्दर्य - सामा - चकेवा : एससी सुमन १. Introduction (परिचय) : आजुक आधुनिक युग मे तेजी सँ विकासक पश्चात् पौराणिक कथा आ लोककथा पर आधारित परम्परा एखनो विभिन्न समुदाय आ क्षेत्र मे कायम छैक । यैह कारण अछि जे द्वापर युग सँ चलि रहल सामा-चकेवा पावनि मिथिलांचल मे नहि आर्यवर्तक अन्य क्षेत्र मे सेहो उल्लास आ लोकाचार सँ मनाओल जाइत अछि |  आर्यवर्त के मिथिला, मगध, बैशाली आ पटलीपुत्र आदि राज्य अर्थात नेपाल के तराई-मधेश, बिहार, झारखंड आ उत्तर प्रदेश के किछु भाग में मनाओल जाइत छैक  | नेपाल मे मनाओल जायवला विभिन्न धार्मिक आ आध्यात्मिक सांस्कृतिक उत्सव मे सर्वाधिक लोकप्रिय पावनि अछि ‘सामा-चकेवा’ । एहि मे विवाहित आ अविवाहित दुनू बहिन अपन भाय के दीर्घायु के कामना करैत सामा के भूमिका निभाबैत छथि जे भाई-बहिन के बीच अपार प्रेम आ असीम स्नेह स भरल सामा पर्व में निम्नलिखित धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक आ कलात्मक विशेषता अछि | उगैत सूर्य के अर्घ चढ़ा क लोक पर्व ‘छैठ’ मनाओल जाईत छैत | एकर संगहि शरद ऋतुक आगमनक बाद हिमालय पर जखन ठंढा भ' जाइत छैक त' रंग-बिरंगक प्रवासी चिड़ै सभ मिथ...