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पौभा चित्रकला: नेपाल कि चित्र-साधना में तान्त्रिक और सांस्कृतिक सवाद

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  पौभा चित्रकला: नेपाल की चित्र-साधना में तांत्रिक सौंदर्य और सांस्कृतिक संवाद By  Suman Singh Posted on September 13, 2025 Time to Read: 17 min - 3127 words सुबोध चन्द्र सुमन (S. C. Suman) नेपाल के समकालीन चित्रकारों में एक महत्वपूर्ण नाम हैं, जिनकी कला में परंपरा और आधुनिकता का अनूठा संगम देखने को मिलता है। मिथिला क्षेत्र में जन्मे सुमन ने बचपन से ही लोककला, विशेषकर मधुबनी चित्रकला से प्रेरणा ली, जिसे उन्होंने आधुनिक दृष्टिकोण के साथ पुनर्परिभाषित किया। उनकी चित्रकृतियों में मिथिला की पारंपरिक रेखांकन शैली, गहरे रंगों का प्रयोग, तथा सूक्ष्म आकृतियों का संयोजन दिखाई देता है, लेकिन विषयवस्तु आधुनिक जीवन, सामाजिक यथार्थ और सांस्कृतिक द्वंद्व से भी जुड़ी रहती है। सुमन की कला केवल सौंदर्यबोध तक सीमित नहीं, बल्कि उसमें सामाजिक सरोकार और सांस्कृतिक चेतना भी स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है। उन्होंने मिथिला कला को वैश्विक मंच तक पहुँचाने में योगदान दिया है और नेपाल सहित भारत व अन्य देशों की प्रदर्शनियों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। उनके चित्र मिथिला की सांस्कृतिक स्मृति और आधुनिक ...

" लोक चित्रकार का लोक लय"

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  “लोक चित्रकार” का लोक लय By  Suman Singh Posted on September 13, 2025 Time to Read: 7 min - 1291 words वरिष्ठ कलाकार एस. सी. सुमन अपने इस आलेख के माध्यम से नेपाल में प्रचलित पौभा चित्रकला के ख्यात कलाकार  लोक चित्रकार   और उनकी कला यात्रा पर चर्चा कर रहे हैं I-संपादक एस.सी. सुमन नेपाल की पारंपरिक चित्रकला की एक विधा नेवारी समुदाय द्वारा बनाई जाने वाली पौभा कला है। देखने में यह थाङ्का जैसी लग सकती है, लेकिन इसकी शैली और भावना में अंतर होता है। पौभा कला केवल देवी-देवताओं की कथाओं को ही नहीं, बल्कि आम लोगों की जीवनशैली की कहानियों को भी समेटती है, जबकि थाङ्का कला धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं को विशेष प्राथमिकता देती है। नेपाल में गौतम बुद्ध के काल से ही पौभा कला के सृजन की शुरुआत हुई है, ऐसा शास्त्रीय विश्वास है। हालांकि, विदेशी लेखों और अन्य प्रमाणों के आधार पर यह पाया गया है कि 13वीं शताब्दी तक बनी पौभा कलाओं के ऐतिहासिक दस्तावेज उपलब्ध हैं। परंपरागत पौभा कला को धर्म, संस्कृति और जीवनशैली को जीवंत रखने वाले एक साधन के रूप में माना जाता है। एक तो वैसे ही काठमांडू म...

“चन्द्र -संवाद : परम्पराको पुनर्जागरण”

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 “चन्द्र -संवादः परम्पराको पुनर्जागरण” एससी सुमन  मिथिलाञ्चल, केवल भौगोलिक भूगोल मात्र होइन, एक समृद्ध सांस्कृतिक चेतनाको केन्द्र हो। यो भूभाग शताब्दीयौँ देखि वैदिक सनातन परम्पराहरूको पालक, संरक्षक र संवाहक रहि आएको छ। यहाँका पर्व -उत्सव, परम्परा, लोकाचार तथा धार्मिक संस्कारहरूले केवल सामाजिक जीवनलाई मात्रै नभई, आध्यात्मिक अनुशासन र जीवनदर्शनलाई पनि सुदृढ बनाएका छन्। यस्तै अनुपम परम्परा र गहन आध्यात्मिक चेतनाले युक्त एक प्रमुख पर्व हो -चौरचन पर्व, जसलाई स्थानीय भाषामा चौठचन्द्र, चौरचन, वा चौथ चाँदको नामले चिनिन्छ। चौरचन पर्व विशेषतः भाद्र शुक्ल चतुर्थीका दिन, अर्थात् गणेश चतुर्थीको सन्दर्भमा मनाइन्छ। हिन्दू धर्मशास्त्रअनुसार, यही दिन विघ्नहर्ता भगवान् श्रीगणेशको प्राकट्य भएको मानिन्छ। तर मिथिलाञ्चलमा गणेश चतुर्थीले मात्र सीमित अर्थ राख्दैन; यस दिन साँझ परेपछि चन्द्रदेवको पूजा -अर्चना, उपवास र विशिष्ट मन्त्रोच्चारणसहित चन्द्र दर्शन गर्नु अत्यन्तै पुण्यकारी र आवश्यक मानिन्छ। यही सन्दर्भमा यो पर्व चौरचनको रूपमा विकसित भएको देखिन्छ। यस पर्वको मूल उद्देश्य हो -शुभ -लाभ, कुटुम्बको क...

मिथिला संस्कृतिको अरिपन : एक परिचय

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  मिथिला संस्कृतिको अरिपना : एक परिचय मिथिला संस्कृतिको अरिपन कलाको सिर्जनासँगै अनुसन्धान गर्न धेरै बाँकी छ एससी सुमन २०८० असोज २७ गते ८:२९ मा प्रकाशित 34 Shares अरिपन कला मिथिला क्षेत्रको बहुआयामिक सांस्कृतिक सम्पदा हो, तर उपयुक्त अर्थ, इतिहास र परम्परा, प्रतीक र महत्व, सिर्जनाको कारण, विधि र सामग्रीको प्रयोग, अमूर्त रूपमा मूल्यजस्ता धेरै पक्षको पर्याप्त अध्ययन र अनुसन्धानको अभाव छ एससी सुमन नेपाल एउटा सानो र भूपरिवेष्ठित तर विविधतायुक्त प्राकृतिक र सांस्कृतिक सम्पदाको धनी देश हो । कला, संस्कृति, प्रकृति, जनजीवन लगायतका क्षेत्रमा पाइने विविधता नै नेपालको पहिचान हो । मुलुक हैसियत र महिमा मात्र होइन, राष्ट्रको विशिष्ट पहिचान मन्दिर, गुम्बा, चित्र, विभिन्न कला, चाडपर्व, हिमाल, नदी, वन, ताललगायत विभिन्न सुन्दर ठाउँले दिएको छ । यसले हाम्रो सौन्दर्यको झल्कोलाई विश्वसामु चिनाउन सकेको छ । बाँकी विभिन्न कला रूपमध्ये, अरिपन नेपालीय मिथिला क्षेत्रको महत्वपूर्ण सांस्कृतिक सम्पदा हो । यो विशेषगरी मिथिला क्षेत्रका घर र आँगनमा कोरिएको भूमि चित्रकला हो । त्यसैले यसलाई मैथिली संस्कृतिको अद्भूत कला...